चालू होवत हवय गरमी, जम्मो लगावय डरमी कूल।
लागथे सूरज ममा हमन ल, बनावत हे अप्रिल फूल।।
दिन म जरे घाम अऊ, रतिहा म लागथे जाड़।
एईसन तो हवय संगी, हरियाणा म हिसार।।
कोन जनी का हवय, सूरज ममा के इच्छा।
जाड़ अऊ गरमी देके, लेवय जम्मो के परीक्क्षा।।
मोटर अऊ इंजन के खोलई, होवत हवे आरी-पारी।
पना-पेंचिस के बुता म, मजा आवत हवय भारी।।
टूरा ता टूरा इहाँ, नोनी मन घला मजा उठावत हे।
अऊ जादा होवत हवय, ताहन मुहुँ ल फुलावत हे।।
इंजन के पढ़ई म, अजय सर के हँसी-ठिठोली।
बड़ा निक लागे ओखर, छत्तीसगढ़ी म बोली।।
फेर चालू होईस हमर, इलेक्ट्रॉनिक के कक्छा।
राम सर के निक पढ़ई, होईस पढ़े के इच्छा।।
बरथे कइसे लट्टू टेक्टर म, तहू ल बताईस।
स्टाटर अऊ बेटरी ल घलो, खोल के दिखाईस।।
होली के दिन म खेलेन जम्मो, चिखला संग म गुलाल।
जम्मो के मुँहु धो-धो के, होगे रिहिस लाले लाल।।
ऐखर बाद क्लच अऊ, बेरेक ल समझाईस।
कइसे करबो टेक्टर कन्ट्रोल, तेला घलौ बताईस।।
आंध्रा के भास्कर सर, अऊ इँहा ले सर अरविंद।
दोनों झन के पढ़ई ले, भाग जाथे जम्मो के नींद।।
आज जम्मो झन टेक्टर ल, बने-बने चलावत हवन।
अट्ठो आठ जइसन चलाके, जम्मो मुचमुचावत हन।।
सुकरार के बिहिनिया ले, पावर टिलर ल भगायेन।
कउनो कउनो त भोरहा म, रूख म घलो टेकायेन।।
चाय पियई छोड़ टेक्टर ल, कालोनी म दउड़ायेन।
मजा लेके चक्कर म, काँटातार म घला झपायेन।।
ताहन नाँगर संग मा होईस, टेक्टर के मुलाकात।
पीछू भागिस, जब एक्सीलेटर म परिस लात।।
आठ-दस दिन म जम्मो संगी, अपन घर चले जाबो।
एक-दूसर मन के संगी, सूरता करतेच रही जाबो।।
एखर बाद कभू हमन, मिल पाबो कि नी मिल पाबो।
हिसार के ये गोठ ल, कभू नी भुलाबो।।
“राज” ल सूरता राखहू, इ़ँहा ले जावत जावत।
बैरी-दुश्मनी ल भुलाके, तुमन रहू मुचमुचावत।।
दिल म समा जाही हमर, दोस्ती के निसानी।
बड़ सुरता आही संगी, बीते संझा के कहानी।।
बड़ सुरता आही….।।
पुष्पराज साहू “राज”
छुरा (गरियाबंद)
हिसार के सुरता बने हावय।
Thank u papa ji